आईपीसी धारा 389 अपराध का अभियोग लगाने के भय में उद्दापन | IPC Section 389 In Hindi
पथ प्रदर्शन: भारतीय दंड संहिता > अध्याय 17: सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में > उद्दापन के विषय में> आईपीसी धारा 389
आईपीसी धारा 389: उद्दापन करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का अभियोग लगाने के भय में डालना
जो कोई उद्दापन करने के लिए। किसी व्यक्ति को, स्वयं उसके विरुद्ध या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध यह अभियोग लगाने का भय दिखलाएगा या यह भय दिखलाने का प्रयत्न करेगा कि उसने ऐसा अपराध किया है, या करने का प्रयत्न किया है, जो मृत्यु से या 1आजीवन कारावास से, या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुमति से भी दंडनीय होगा; तथा यदि वह अपराध ऐसा हो जो इस संहिता की धारा 377 के अधीन दंडनीय है, तो वह 1आजीवन कारावास से दंडित किया जा सकेगा।
संशोधन
- 1955 के अधिनियम से 26 की धारा 117 औद्वारा निर्वास पर प्रतिस्यापित।
-भारतीय दंड संहिता के शब्द
अपराध | किसी व्यक्ति को मौत की सजा के अपराध के आरोप के डर से लाना, आजीवन कारावास या जबरन वसूली करने के लिए 10 साल तक कारावास |
सजा | 10 साल + जुर्माना |
संज्ञेय | संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक नही) |
जमानत | जमानतीय |
विचारणीय | प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट |
समझौता | नही किया जा सकता |