भारतीय संविधान के संशोधन की शक्ति, प्रकार और प्रक्रिया | Amendment of Constitution In Hindi
विश्व में ज्यादातर संघात्मक संविधान अनम्य होते हैं; क्योंकि उनके संशोधन की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल होती है।
- जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, स्विटजरलैण्ड आदि सभी परिसंघात्मक संविधानों में संशोधन की प्रक्रिया बड़ी जटिल है।
इसी आधार पर परिसंघात्मक (Federal) संविधान की आलोचना की जाती है कि यह अपरिवर्तनशील होने के नाते विकास की गति से मेल नहीं रख पाता है।
जैसा कि हम जानते है, भारतीय संविधान के निर्माता विश्व के सभी परिसंघात्मक संविधानों के संचालन में हुई कठिनाइयों से पूर्णरूप से अवगत थे; इसीलिए वे भारतीय संविधान को अत्यधिक अनम्यता से बचाना चाहते थे।
वे अच्छी तरह से जानते थे कि संविधान किसी देश की जनता के लिए बनाया जाता है और उनकी आवश्यकताओं के साथ-साथ उसमें समय-समय पर परिवर्तन करना जरुरी होता है।
भारतीय संविधान एक लिखित संविधान होते हुए भी पर्याप्त परिवर्तनशील संविधान है।
संविधान में केवल कुछ ही ऐसे उपबन्ध हैं जिनमें परिवर्तन करने के लिए विशेष प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
अधिकतर उपबन्धो को संसद द्वारा साधारण बहुमत से ही संशोधित किया जा सकता है।
- यहाँ तक कि संशोधन की विशेष प्रक्रिया भी विश्व के अन्य परिसंघात्मक संविधानों की अपेक्षाकृत सरल है।
दुसरा पक्ष यह भी था की लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है तो उसके पास आवश्यकता अनुसार संविधान में बदलाव करने का विकल्प होना चाहिए।
डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में संशोधन के प्रस्ताव को पेश करते हुए यह कहा था,
“जो संविधान से असंतुष्ट हैं उन्हें बस दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करना होगा। यदि वे वयस्क मत के आधार पर निर्वाचित संसद में दो-तिहाई बहुमत भी नहीं पा सकते हैं तो यह समझा जाना चाहिए कि संविधान के प्रति असंतोष में जनता उनके साथ नहीं है।”
लेकिन संविधान निर्माता यह भी जानते थे की यदि संविधान को आवश्यकता से अधिक लचीला (Flexible) बना दिया जायेगा तो वह शासक दल के हाथों की कठपुतली बन जायेगा और वे बिन-उपयोगी संशोधन भी कर देंगे।
इसीलिए संविधान संशोधन की प्रक्रिया को न तो ब्रिटेन की तरफ सरल और न तो USA की तरह कठोर है, उसके बदले दोनों को मिश्र करके बनाया गया।
संविधान संशोधन की शक्ति
ज्यादातर परिसंघीय संविधान वाले देशो में संशोधन करने के लिए कोई विशेष संस्था या प्रक्रिया होती है, या फिर संशोधन के लिए संविधानसभा का गठन करना पड़ता है।
लेकिन भारत में ऐसा कुछ न करके संशोधन प्रक्रिया को सरल करने के लिए यह शक्ति संसद को दी गई।
- संविधान संशोधन की शक्ति (Power to Amend Constitution) और प्रक्रिया के प्रावधान संविधान के भाग 20 के अनुच्छेद 368 में किया गया है।
इस शक्ति का इस्तेमाल करके संसद बिना बुनियादी ढांचे (Basic Structure) को बदले संविधान की उद्देशिका, मूल अधिकार जैसे लगभग सभी प्रावधानों में संशोधन कर सकती है ।
- केशवानंद भारती केस (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के बुनियादी ढांचे का सिद्धांत दिया था।
संशोधन की प्रक्रिया/विधि (Procedure For Amendment)
अनुच्छेद 368 में उल्लेखित प्रक्रिया:-
(1) संविधान संशोधन की शरुआत संसद के किसी भी सदन में संशोधन बिल को प्रस्तुत करके कि जा सकता है।
- राज्य की विधानसभा में संशोधन बिल प्रस्तुत नही कर सकते
(2) यह बिल (विधेयक) किसी मंत्री या खानगी सदस्य भी प्रस्तुत कर सकते है, इसमें राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नही होती।
(3) यह संशोधन बिल दोनों सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा (50% से अधिक) तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत (विशेष बहुमत= Special Majority) द्वारा पारित करना पड़ेगा।
(4) प्रत्येक सदन को अलग- अलग विधेयक पारित करना होगा । अगर किसी वजह से दोनों सदन में असहमति बनती है तो बिल रद (lapse) हो जायेगा।
- संविधान संशोधन विधेयक में संयुक्त बैठक (Joint Sitting) नही हो सकती, फिर भले ही कुछ संशोधन सामान्य बहुमत से ही क्यों न होते हो।
(5) अगर बिल संविधान के परिसंधीय प्रावधान (Federal Provision) को संशोधित करना चाहता है, तो उसे कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों द्वारा सामान्य बहुमत से पारित करना जरुरी है।
- सामान्य बहुमत यानी उपस्थित एवं मत देने वालो का बहुमत (50% से अधिक)
(6) दोनों सदन से बिल पास होने और आवश्यक स्थिति में आधे राज्यों से सहमति लेने के बाद इस संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति के सामने अनुमति के लिए भेजा जाता है।
(7) राष्ट्रपति को संशोधन विधेयक पर अनुमति देनी ही होगी। राष्ट्रपति न तो अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल कर शकते है और न तो संसद को पुनर्विचार(Reconsideration) करने के लिए भेज शकते है।
(8) राष्ट्रपति की सहमती के बाद यह विधेयक संविधान संशोधन कानून (Constitutional Amendment Act) बन जायेगा और संविधान में इस कानून के अनुसार सुधार हो जायेगा।
संशोधन के प्रकार (Types of Amendments)
संशोधन के कुल तीन प्रकार है। जिसमे दो अनुच्छेद 368 के अंतर्गत है और एक अनुच्छेद 368 के बाहर है।
- संसद के सामान्य बहुमत से संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत से संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति से संशोधन
1. संसद के सामान्य बहुमत से संशोधन (Simple Majority)
इस संशोधन विधेयक को संसद के प्रत्येक सदन को सिर्फ सामान्य बहुमत से पारित करना होगा।
यानी, उपस्थित एवं मतदान करने वाले का बहुमत (50% से अधिक) से,
- यह प्रक्रिया सामान्य बिल (Ordinary Bill) पारित करने की प्रक्रिया के समान है।
यह संशोधन अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर आता है, मतलब जब नीचे दिए प्रावधानो में कोई संशोधन किया जाता है तो उसे सामान्य संविधान संशोधन माना जाता है।
- नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना (अनुच्छेद 2)
- नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नाम में परिवर्तन (अनुच्छेद 3)
- नागरिकता – प्राप्ति और समाप्ति (भाग 2)
- राज्यों में विधान परिषदों का उन्मूलन या निर्माण (अनुच्छेद 169)
- संसद में कोरम (Quorum) (अनुच्छेद 100)
- संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते (अनुच्छेद 106)
- संसद में प्रक्रिया के नियम
- संसद, उसके सदस्यों और उसकी समितियों के विशेषाधिकार
- संसद में अंग्रेजी भाषा का उपयोग(अनुच्छेद 343)
- सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या
- सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाना
- राजभाषा का उपयोग
- संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव
- निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन
- केंद्र शासित प्रदेश
- दूसरी अनुसूची में उल्लेखित राष्ट्रपति, राज्यपालों, अध्यक्ष, न्यायाधीशों के पगार, भत्ते, विशेषाधिकार, आदि में संशोधन
- पांचवी अनुसूची- अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण
- छठी अनुसूची- आदिवासी क्षेत्र का प्रशासन
2. संसद के विशेष बहुमत से संशोधन (Special Majority)
संविधान के ज्यादातर प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत से सुधारा जाता है।
विशेष बहुमत= सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई (2/3) बहुमत, जो सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत (50% से) अधिक हो।
यहा कुल सदस्य संख्या से मतलब है, की सदन की रिक्त सीटे और अनुपस्थित सदस्य को भी गिना जायेगा।
- कुल सदस्यता= उपस्थित सदस्य+ अनुपस्थित सदस्य + रिक्त सीटे
इस प्रक्रिया से संसद,-
- मूल अधिकार
- राज्य के निर्देशक सिद्धांत
- उद्देशिका जैसे
- बाकी सभी प्रावधान जो प्रक्रिया 1 और 3 में नही है
उसको संशोधित कर सकती है।
3. संसद के विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति से संशोधन
संविधान के ऐसे उपबंध जो देश की शासन प्रणाली को परिसंधीय (Federal) स्वरूप देते है उनमें संशोधन करने के लिए संविधान संशोधक विधेयक को इस प्रक्रिया से गुजरना होगा ।
इन उपबंधों के संशोधन के लिए सबसे कठिन प्रक्रिया अपनायी गयी है।
इस प्रक्रिया में उपर उल्लेखित संसद के विशेष बहुमत के साथ साथ आधे राज्यों से सहमती लेनी होगी ।
संसद से पारित होने के बाद राज्य की विधायिका को सामान्य बहुमत से इस संशोधन विधेयक को सहमती देनी होती है ।
अगर आधे राज्य सहमती दे देते है तो संविधान संशोधित हो जायेगा, बाकी के राज्य बिल को पारित करे या ना करे इससे कोई फर्क नही पड़ता है।
ध्यान दे की यहा पर राज्यों को विधेयक पारित करने के लिए कोई समय सीमा नही दी गई है, मतलब की आधे राज्यों चाहे तो मिलकर संशोधन विधेयक को लंबित(Pending) कर सकते है।
निम्नलिखित उपबन्धों के संशोधन के लिए विशेष बहुमत और राज्यों का समर्थन आवश्यक है-
- राष्ट्रपति का निर्वाचन और उसकी प्रक्रिया (अनुच्छेद 54 और 55)
- संघ तथा राज्यों की कार्यपालिका की शक्ति का विस्तार करना (अनुच्छेद 73, 162)
- सुप्रीम कोर्ट तथा राज्य न्यायपालिका (अनुच्छेद 124-147, 214-231, 241)
- संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्ति का वितरण (अनुच्छेद 245-255)
- संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में (अनुसूची 4)
- सातवीं अनुसूची की किसी विषय में
- अनुच्छेद 368 के उपबन्धों संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया में
भारत और USA के संशोधन प्रक्रिया में भेद
भारत | USA |
कुछ प्रावधानों का सामान्य बहुमत से संशोधन | सामान्य बहुमत से संशोधन नही |
विशेष बहुमत और आधे (1/2) राज्यों से सहमति | विशेष बहुमत और तीन चोथाई (3/4) राज्यों से सहमति |
संशोधन की प्रक्रिया सरल और परिवर्तनशील | कठोर प्रक्रिया |
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