आईपीसी धारा 505 लोक रिष्टिकारक वक्तव्य | IPC Section 505 In Hindi
पथ प्रदर्शन: भारतीय दंड संहिता > अध्याय 22: आपराधिक अभित्रास, अपमान और क्षोभ के विषय में > आईपीसी धारा 505
आईपीसी धारा 505: 1लोक रिष्टिकारक वक्तव्य
(1) 2जो कोई किसी कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट की—
(क) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, 3भारत की सेना, 4नौसेना या वायुसेना का कोई आफिसर, सैनिक, 5नाविक या वायुसैनिक विद्रोह करे या अन्यथा वह अपने उस नाते, अपने कर्तव्य की अवहेलना करे या उसके पालन में असफल रहे, अथवा
(ख) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, लोक या लोक के किसी भाग को ऐसा भय या संत्रास कारित हो जिससे कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध या लोक-प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध करने के लिए उत्प्रेरित हो, अथवा
(ग) इस आशय से कि, या जिससे यह सम्भाव्य हो कि, उससे व्यक्तियों का कोई वर्ग या समुदाय किसी दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उद्दीप्त किया जाए.
रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, वह कारावास से, जो 6तीन वर्ष तक का हो सकेगा. या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(2) 7विभिन्न वर्गों में शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा या संप्रवर्तित करने वाले कथन – जो कोई जनश्रुति या संत्रासकारी समाचार अन्तर्विष्ट करने वाले किसी कथन या रिपोर्ट को, इस आशय से कि, या जिससे यह संभाव्य हो कि, विभिन्न धार्मिक, मूलवंशीय, भाषायी या प्रादेशिक समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं, धर्म, मूलवंश, जन्म-स्थान, निवास-स्थान, भाषा, जाति या समुदाय के आधारों पर या अन्य किसी भी आधार पर पैदा या संप्रवर्तित हो, रचेगा, प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा, वह कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(3) पूजा के स्थान आदि में किया गया उपधारा (2) के अधीन अपराध -जो कोई उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराध किसी पूजा के स्थान में या किसी जमाव में, जो धार्मिक पूजा या धार्मिक कर्म करने में लगा हुआ हो, करेगा, वह कारावास से, जो पांच वर्ष तक का हो सकेगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
अपवाद—ऐसा कोई कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध की कोटि में नहीं आती, जब उसे रचने वाले, प्रकाशित करने वाले या परिचालित करने वाले व्यक्ति के पास इस विश्वास के लिए युक्तियुक्त आधार हो कि ऐसा कथन, जनश्रुति या रिपोर्ट सत्य है और 8वह उसे सद्भावपूर्वक तथा पूर्वोक्त जैसे किसी आशय के बिना रचता है, प्रकाशित करता है या परिचालित करता है ।
संशोधन
- 1898 के अधिनियम सं० 4 की धारा 6 द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- 1969 के अधिनियम सं० 35 की धारा 3 द्वारा धारा 505 को उसकी उपधारा (1) के रूप में पुन:संख्यांकित किया गया ।
- विधि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा “हर मजेस्टी की या इम्पीरियल सर्विस ट्र्प्स” के स्थान पर प्रतिस्थापित। “मजेस्टी” शब्द के पश्चात्वर्ती “या रॉयल इंडियन मरीन में” शब्दों का 1934 के अधिनियम सं० 35 की धारा 2 और अनुसूची द्वारा लोप किया गया था ।
- 1927 के अधिनियम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा “या नौसैना” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- 1927 के अधिनियम सं० 10 की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा “या नौसैनिक” के स्थान पर प्रतिस्थापित । 5
- 1961 के अधिनियम सं० 41 की धारा 4 द्वारा “दो वर्ष” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
- 1969 के अधिनियम सं० 35 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित ।
- 1969 के अधिनियम सं० 35 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित ।
-भारतीय दंड संहिता के शब्द
अपराध | मिथ्या कथन, जनश्रुति आदि को इस आशय से परिचालित करना कि विद्रोह हो अथवा लोक-शान्ति के विरुद्ध अपराध हो। |
सजा | तीन वर्ष के लिए कारावास या जुर्माना या दोनों। |
संज्ञेय | गैर- संज्ञेय (गिरफ्तारी के लिए वॉरेंट आवश्यक) |
जमानत | गैर- जमानतीय |
विचारणीय | सभी मजिस्ट्रेट के लिए |
समझौता | नही किया जा सकता |
Samjh se bejatikarna kisi Kary mai bulakar apman karana