आईपीसी धारा 498क: पति द्वारा पत्नी पर क्रूरता करना | 498A IPC Section In Hindi
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आईपीसी धारा 498क: किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना
जो कोई, किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुमनि से भी दण्डनीय होगा।
स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “क्रूरता” से निम्नलिखित अभिप्रेत है-
(क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिए उसे करने की सम्भावना है; या
(ख) किसी स्त्री को तंग करना, जहां उसे या उससे सम्बन्धित किसी व्यक्ति को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधिविरुद्ध मांग को पूरी करने के लिए प्रपीडित करने की दृष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसे मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है।
संशोधन
- 1983 के अधिनियम में 46 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
-भारतीय दंड संहिता के शब्द
नई धारा 498ए को जोड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
1860 की भारतीय दंड संहिता को 1947 के बाद भारत में कानून के रूप में स्वीकार कर लिया, लेकिन ipc धारा 498क को 1983 में संशोधन करके जोड़ा गया।
यह कानून महिला को अपने ससुराल में होती क्रूरता के सामने रक्षण देता है, पितृसतात्मक भारत देश में इस कानून की आवश्यक तो बहुत पहले से ही थी फिर भी आज़ादी के ढाई दशक बाद दंड संहिता में जोड़ा गया ।
एसी कमियों और सुधार की धीमी गति होने से भारतीय दंड संहिता की कई विशेषज्ञ आलोचना करते है।
भारतीय समाज में प्राचीन काल से महिला पर जुर्म होते आये है, उसमे भी पति को स्वामी और पत्नी को दासी मानने की सामाजिक मानसिकता से घरेलु हिंसा बहुत ही ज्यादा होती आयी है।
दूसरी तरफ समाज भी घरेलू हिंसा को पुरुष का अधिकार समजकर हंमेशा उसके पक्ष में खड़ा दिखता है।
स्त्री पर घरेलु हिंसा के कुछ प्रकार:
- दहेज़ की मांग
- शारीरिक और मानसिक त्रास
- बच्चे पैदा करने के लिए दबाव
- आर्थिक और समाजिक अधिकार छीन लेना
- झूठी और द्वेषपूर्ण मुकदमेबाजी द्वारा क्रूरता
- वंचित और बेकार की आदतों से क्रूरता
- वैवाहिक संबंधों द्वारा क्रूरता
- गैर – दहेज की मांग के लिए उत्पीड़न और क्रूरता
- बालिका की स्वीकृति न होने से क्रूरता
- पत्नी को लिंग – निर्धारण परीक्षण के लिए मजबूर करके क्रूरता
- शुद्धता पर झूठे हमलों से क्रूरता
- बच्चों को ले जाकर क्रूरता
- पत्नी को चोट पहुँचाना या मारना या शारीरिक रूप से चोट पहुँचाना (शराब के प्रभाव में या नहीं)
- पति द्वारा क्रूरता या पति के रिश्तेदार
यह सभी स्थिति में निर्दोष स्त्री को जुल्म उठाना पड़ता है और कई बार तो आत्महत्या भी कर लेती है।
इन सभी कृत्यों में महिला को न्याय देने के लिए इस धारा को 1983 के अधिनियम में 46 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित किया गया।
अपराध | क्रूरता के लिए एक विवाहित महिला के अधीन करने के लिए सजा | यदि अपराध की जानकारी पीड़ित या उसके रिश्तेदार द्वारा रक्त, विवाह या गोद लेने, या अधिसूचित लोक सेवक द्वारा एसएचओ को दी जाती है |
सजा | 3 साल + जुर्माना | 3 साल + जुर्माना |
संज्ञेय | असंज्ञेय | संज्ञेय |
जमानत | गैर जमानती | गैर जमानती |
विचारणीय | मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी | मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी |
समझौता | नही किया जा सकता | नही किया जा सकता |

किस स्थिति में धारा 498A लागु होगी?
इस धारा के तहत केस दर्ज करने के लिए कुछ आवश्यकता की पूर्ति होना जरुरी है:-
(1) विवाहित महिला: जिस स्त्री पर क्रूरता हुयी है वह शादीशुदा होनी चाहिए। यानि की लिव इन रिलेशन और अन्य संबंधो में यह धारा नही लगाई जा सकती है।
(2) पति का पति या रिश्तेदार: ऐसी क्रूरता या प्रताड़ना या तो पति या पति के रिश्तेदारों, या दोनों द्वारा किया होना चाहिए।
हालही में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने चुकादे में न्यायमूर्ति चीकाती मानवेंद्रनाथ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करते हुए कहा कि प्रेमिका या उपपत्नी, जो ब्लड या शादी से संबंधित नहीं है, आईपीसी की धारा 498-ए के उद्देश्य से पति की रिश्तेदार नहीं हैं।
यानि की पति और उसके रक्त संबंधी पर ही इस धारा लागु होती है
(3) क्रूरता या उत्पीड़न: उस महिला को क्रूरता या उत्पीड़न के अधीन होना चाहिए। क्रूरता का बहुत व्यापक अर्थ हो सकता है। यहां तक कि दहेज की मांग भी क्रूरता का हिस्सा हो सकती है।
क्रूरता का व्यापक अर्थ होने से उसकी जानकारी लेनी आवश्यक है।
क्रूरता क्या है?
क्रूरता के दो प्रकार की हो सकती है शारीरिक और मानसिक
शारीरिक क्रूरता:
स्त्री के शरीर पर चोंट पहुचाना, यातना देना,जबरदस्ती करना जीवन जरुरी सुविधा से वंचित करना, बच्चे और लड़के पैदा करने में शरीर पर जुल्म डालना आदि सभी आचरण जो शरीर को दर्द देते है उसको शारीरिक क्रूरता माना जाता है।
मानसिक क्रूरता:
स्त्री के दिमाग पर लगातार तनाव बनाने का आचरण करना जैसे छोटीछोटी बातों पर चारित्र और मायके की आलोचना, लगातार दहेज़ की मांग, धमकी देना, डराना, कम करना, दूसरे व्यक्ति को परेशान करना, आर्थिक और सामजिक अधिकार छीन कर विकास अवरोधना आदि।
धारा 498 ए के तहत क्रूरता और उत्पीड़न
धारा 498क के स्पष्टीकरण में क्रूरता शब्द इस प्रकार के आचारण को सुरक्षित करता है
- कोई भी ऐसा आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की संभावना रखता है
- कोई भी आचरण जिससे किसी महिला को गंभीर चोट लगने की संभावना हो,
- कोई भी आचरण जिससे महिला के जीवन, अंग या मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है,
- किसी भी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा के लिए गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए उसके या उसके रिश्तेदारों के साथ जबरदस्ती करने की दृष्टि से महिला का उत्पीड़न,
- दहेज की ऐसी मांगों को पूरा करने में महिला की विफलता के कारण महिला का उत्पीड़न।
IPC धारा 498क का दुरुपयोग(Misuse)
जो कानून किसको सुरक्षित करने की शक्ति देता है वैसे कानून सिक्के के दो पहलु के समान फायदे और नुकशान दोने होते है ।
धारा 498क के प्रवर्तन द्वारा महिलाओं को जो असीम शक्ति प्रदान की जाती है, उसे देखते हुए, बहुत सी महिलाओं ने अपने पति और ससुराल वालों से अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए इस प्रावधान का दुरुपयोग करने लगी है।
धारा 498ए महिलाओं के हाथों में एक हथियार बन गया है जो अपने पतियों से बदला लेने की कोशिश कर रही है और परिवार के सदस्यों को ब्लैकमेल करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।
सर्वोच्च अदालत ने धारा 498क के दुरुपयोग की इस कदाचार को ‘कानूनी आतंकवाद‘ के रूप में संदर्भित किया है।
धारा 498A का दुरुपयोग अधिक हो रहा है क्योंकि यह सिर्फ पति को प्रभावित नहीं करता है, बल्कि अक्सर बुजुर्ग माता-पिता, दूर के रिश्तेदारों को सभी को गलत तरीके से फंसाया जाता है और आपराधिक न्याय प्रणाली के माध्यम से भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होने की वजह से झूठे मामलों में बचाव करना भी मुश्किल है ।
इस प्रावधान के तहत एक आरोप का बचाव करना भी अक्सर एक कठिन काम हो जाता है, क्योंकि महिला का शब्द अक्सर उच्च पद पर रखा जाता है और महिला द्वारा अपनी शिकायत में बनाई गई कथा का मुकाबला करना कठिन हो जाता है।
एक बार शिकायत दर्ज होने के बाद, एक महिला अपने पति और उसके रिश्तेदारों को अपनी मांगों में देने के लिए, तलाक, उच्च गुजारा भत्ता, या एकमुश्त जबरन वसूली के लिए मजबूर कर सकती है।
सरकार द्वारा भी फर्जी मुकदमों की बाढ़ को देखते हुए धारा 498A, में संशोधन की आवश्यकता को समझा है, फिर भी हम देखते है तो यह पाते हैं कि इस दिशा में और अधिक ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता हैं, यहाँ पर देखने में ये भी पाया गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस धारा के अंतर्गत सीधे गिरफ्तारी या बिना वारंट के गिरफ्तारी पर रोक भी लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दहेज प्रताड़ना निरोधक कानून की धारा 498-A, के बहुत ज्यादा हो रहे दुरुपयोग को देखते हुए इसे रोकने के लिए व्यापक दिशा निर्देश भी जारी किए गये है।
इन नए दिशा निर्देशों के अनुसार अब दहेज प्रताड़ना के मामले से सम्बंधित पीड़ित व्यक्ति या पीड़ित व्यक्ति का कोई रिश्तेदार अपराध की जानकारी देने के लिए पुलिस के पास न जाकर एक मोहल्ला कमेटी के पास जाएंगे, तदुपरांत वह मोहल्ला कमेटी अपनी जांच पड़ताल के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेगी, फिर यह रिपोर्ट पुलिस के पास भेजी जाएगी। कमेटी की रिपोर्ट के बाद ही पुलिस यह निर्णय करेगी की इस मामले में आगे की कार्यवाही करना आवश्यक है, या नहीं।
निष्कर्ष
घरेलु हिंसा, दहेज़ प्रथा को रोकने और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे कर देश के विकास में भागीदार होने के लिए इस कानून का उपयोग होना चाहिए नही के दुरुपयोग करके इस धारा के औचित्य को घटाया जाये।
अगर आपके सबंधी और सोसाइटी में अगर किसी महिला पर घरेलु अत्याचार होता है तो उसको इस धारा के बारेमे बताकर उसकी मदद आवश्य करे ।
bahut hi ache jankari de aapne. thank you