आईपीसी धारा 477क लेखा का मिथ्याकरण | IPC Section 477A In Hindi

पथ प्रदर्शन: भारतीय दंड संहिता > अध्याय 18: दस्तावेजों और संपत्ति चिह्नों संबंधी अपराधों के विषय में > आईपीसी धारा 477क

आईपीसी धारा 477क: 1लेखा का मिथ्याकरण

जो कोई, लिपिक, आफिसर या सेवक होते हुए, या लिपिक, आफिसर या सेवक के नाते नियोजित होते या कार्य करते हुए, किसी 2पुस्तक, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख, मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा को जो उसके नियोजक का हो या उसके नियोजक के कब्जे में हो या जिसे उसने नियोजक के लिए या उसकी ओर से प्राप्त किया हो, जानबूझकर और कपट करने के आशय से नष्ट, परिवर्तित, विकृत या मिथ्याकृत करेगा अथवा किसी ऐसी 2पुस्तक, इलैक्ट्रानिक अभिलेख, कागज, लेख मूल्यवान प्रतिभूति या लेखा में जानबूझकर और कपट करने के आशय से कोई मिथ्या प्रविष्टि करेगा या करने के लिए दुष्प्रेरण करेगा, या उसमें से या उसमें किसी तात्त्विक विशिष्टि का लोप व परिवर्तन करेगा या करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण:- इस धारा के अधीन किसी आरोप में, किसी विशिष्ट व्यक्ति का, जिससे कपट करना आशयित था, नाम बताए बिना या किसी विशिष्ट धनराशि का, जिसके विषय में कपट किया जाना आशयित था या किसी विशिष्ट दिन का, जिस दिन अपराध किया गया था, विनिर्देश किए बिना, कपट करने के साधारण आशय का अभिकथन पर्याप्त होगा ।

संशोधन

  1. 1895 के अधिनियम सं० 3 की धारा 4 द्वारा जोड़ा गया।
  2. 2000 के अधिनियम सं० 21 की धारा 91 और पहली अनुसूची द्वारा “पुस्तक, कागज, लेख” के स्थान पर प्रतिस्थापित।

-भारतीय दंड संहिता के शब्द

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