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अनुच्छेद 368 संविधान संशोधन संसद की शक्ति और प्रक्रिया | Article 368 In Hindi

पथ प्रदर्शन: भारतीय संविधान > भाग 20: संविधान का संशोधन > अनुच्छेद 368

अनुच्छेद 368: 1संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया

368(1): 2इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद् अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनुच्छेद में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी ।

368(2): 3इस संविधान के संशोधन का आरंभ संसद् के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुरःस्थापित करके ही किया जा सकेगा और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तब 4वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो विधेयक को अपनी अनुमति देगा और तब संविधान उस विधेयक के निबंधनों के अनुसार संशोधित हो जाएगा :

परंतु यदि ऐसा संशोधन –

(क) अनुच्छेद 54, अनुच्छेद 55, अनुच्छेद 73, 5[अनुच्छेद 162, अनुच्छेद 241 या अनुच्छेद 279क] में, या

(ख) भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1 में, या

(ग) सातवीं अनुसूची की किसी सूची में, या

(घ) संसद् में राज्यों के प्रतिनिधित्व में, या

(ङ) इस अनुच्छेद के उपबंधों में,

कोई परिवर्तन करने के लिए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने वाला विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किए जाने से पहले उस संशोधन के लिए 6*** कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा पारित इस आशय के संकल्पों द्वारा उन विधान-मंडलों का अनुसमर्थन भी अपेक्षित होगा ।

368(3): 7अनुच्छेद 13 की कोई बात इस अनुच्छेद के अधीन किए गए किसी संशोधन को लागू नहीं होगी ।

368(4): 8इस संविधान का (जिसके अंतर्गत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनुच्छेद के अधीन संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 55 के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात् किया गया या किया गया तात्पर्यित कोई संशोधन किसी न्यायालय में किसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ।

368(5): शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस अनुच्छेद के अधीन इस संविधान के उपबंधों का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन करने के लिए संसद् की संविधायी शक्ति पर किसी प्रकार का निर्बन्धन नहीं होगा ।


  1. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा “संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया” के स्थान पर (5-11-1971 से) प्रतिस्थापित ।
  2. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्थापित ।
  3. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छेद 368 को खंड (2) के रुप में पुनःसंख्यांकित किया गया ।
  4. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा “तब वह राष्ट्रपति के समक्ष उसकी अनुमति के लिए रखा जाएगा तथा विधेयक को ऐसी अनुमति दी जाने के पश्चात्” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  5. संविधान (एक सौ एकवां संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 15 द्वारा (16-9-2016 से) “अनुच्छेद 162 या अनुच्छेद 241” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
  6. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहली अनुसूची के भाग क और भाग ख में विनिर्दिष्ट” शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया ।
  7. संविधान (चौबीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्थापित ।
  8. अनुच्छेद 368 में खंड (4) और खंड (5) संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 55 द्वारा (3- 1-1977 से) अंतःस्थापित किए गए थे । उच्चतम न्यायालय ने मिनर्वा मिल्स लिमिटेड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य एआईआर 1980, एस.सी. 1789 के मामले में इस धारा को अविधिमान्य घोषित किया है ।

-संविधान के शब्द

भारतीय संविधान अनुच्छेद 368: संविधान का संशोधन करने की संसद् की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया

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