अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि में संरक्षण | Article 20 In Hindi
पथ प्रदर्शन: भारतीय संविधान > भाग 3 : मूल अधिकार > स्वातंत्र्य अधिकार > अनुच्छेद 20
अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
20(1): कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
20(2): किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा ।
20(3): किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
-संविधान के शब्द
अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 22 उन लोगों को दिया जाता है जो किसी अपराध में आरोपी हैं।
अनुच्छेद 20 का स्पष्टीकरण(Explanation)
अनुच्छेद 20 उन लोगों को संरक्षण का अधिकार देतें है जिनको किसी गुनाह में अपराधी माना जा रहा हो
अनुच्छेद 20 भारत के नागरिक एवं विदेशी सबके लिए मूल अधिकार है
अनुच्छेद 20(1) (Ex Post Facto Law)
मान ले की एक व्यकित ने अपने घर में अचानक घुस गए एलियन को मार दिया, जीव हिंसा की वजह से उस व्यक्ति पर कार्यवाही होनी चाहिए लेकिन कार्यवाही होगी किस कानून पर?
क्या भारत में कोई कानून है जो एलियन की हत्या करने पर सजा देने की बात करता हो?
अभी तो कोई कानून नही है, लेकिन इस हत्या के बाद भारत की संसद ने दो महीने एक नया कानून बना डाला जिसमे एलियन की हत्या पर सजा होंगी
अब सवाल यह उठता है की क्या उस हत्या करने वाले व्यक्ति को सजा मिलेगी?
नहीं, उसको सजा नही मिलेगी और संसद चाहकर ही सजा नही दे सकती
क्योकि यहा पर अनुच्छेद 20 से उस व्यक्ति को रक्षण मिला है
अनुच्छेद 20(1) कहता है की जब गुनाह होता है तब उस गुनाह के लिए सजा देनेवाला कानून होना चाहिए, बाद में कानून बनाके सजा नही दे सकते
इस वजह से एलियन की हत्या गुनाह नही होगा और वह व्यक्ति गुनेगार भी नही होगा, क्योकि तब कोई कानून थाही नही
ध्यान दे: अनुच्छेद 20(1) फौजदारी मामलों (Criminal Cases) में संरक्षण देना है, दीवानी मामलों(Civil Cases) में नही
महत्वपूर्ण बात:
रतनलाल बनाम पंजाब राज्य के मामले में एक 16 वर्षीय लड़के पर घर में अनधिकार प्रवेश तथा 7 वर्ष की बालिका का शीलभंग करने का केस चलाया गया था।
अधीनस्थ न्यायालय ने उसे 6 माह का कठोर कारावास दिया और जुर्माना भी लगाया।
लेकिन जब अपील न्यायालय में अपील चल रही थी तब संसद ने Probation of Offenders Act के अन्तर्गत सुधार करके 21 वर्ष की आयु से कम आयु के व्यक्तियों को कारावास का दण्ड न देने का प्रावधान कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि वह 16 साल का लड़के को इस कानून में सुधार से लाभ होगा और उसका दंड कम होगा।
संक्षेप्त में कहे तो अगर नये कानून से सजा कम होती हो तो वह कानून लागु होगा, लेकिन अगर सजा बढती हो तो लागु नही होगा
संसद पूर्वप्रभावी (Restrospective) और प्रत्याशी (Prospective) कानून बना सकती है लेकिन अनुच्छेद 20(1) संसद को फौजदारी मामलों में पूर्वप्रभावी कानून बनाने रोकता है
विवाद (Controversies)
वोडाफोन केस
2008 में वोडाफोन और हच(Hutch) साथ मर्जर हो गया, कंपनी ने टैक्स से बचने के लिए यह सौदा भारत के बहार किया, इस सौदे में सरकार को मिलने वाला करोडो का कर प्राप्त न हुआ
उस वक्त कानून नही था की कंपनी को कर देने के लिए मजबूर किया जा सके
बाद में 2012 में संसद ने कानून बनाया जो अपने पूर्वप्रभावी प्रावधान से 2008 के वोडाफोन-हच मर्जर पर लागु किया गया,
फीर भी भारत की सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना केस हार गई और वोडाफोन कर देने से बच गई
ऐसा ही मामला केयर्न एनर्जी केस में हुआ था जहा अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ने भारत सरकार के खिलाफ निर्णय दिया
अनुच्छेद 20(2) Double Jeopardy
एक अपराध के लिए एक बार सजा हो सकती है, एक से ज्यादा बार सजा होने के मामले में अपराधी को अनुच्छेद 20(2) बचाता है
अनुच्छेद 20 (2) एसा मूल अधिकार देता है जिससे अपराधी को एक गुनाह की दो बार सजा न मिल जाये
थोमस दास विरुद्ध पंजाब राज्य के केस में कहा गया की अनुच्छेद 20(2) उपयोग करके आप रक्षण तभी ले सकते हो अब आप
- किसी गुनाह के लिए आरोपी हो
- आप पर मुकदमा चल रहा हो
- और इस मुकदमे के अंत में सजा देने का प्रावधान हो
मकबूल हसन बनाम वम्बई राज्य के मामले में अपीलार्थी भारत में चोरी से कुछ सोना लाया, किन्तु उसने कस्टम-अधिकारियों के समक्ष यह नहीं घोषित किया कि वह सोना लाया है।
कस्टम अधिकारियों ने सी कस्टम ऐक्ट (Sea Customs Act) के अधीन उसके सोना को जब्त कर लिया।
इसके पश्चात् उस पर फारेन एक्सचेन्ज रेग्यूलेशन ऐक्ट के अन्तर्गत बिना अनुमति के भारत में सोना लाने के अपराध के लिए अभियोग चलाया गया।
मकबूल ने कहा कीकस्टम वालोने सोना जब्त करके सजा दे दी गई हो तो फिर कोर्ट में केस क्यों ?
उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि कस्टम-अधिकारी न्यायालय या न्यायिक न्यायाधिकरण नहीं था, न ही सी कस्टम ऐक्ट के अन्तर्गत सोना-जब्ती का उनका आदेश न्यायिक प्रकृति का था जिससे दोहरे खतरे के नियम के संरक्षण का दावा किया जा सकता था।
इसी प्रकार, विभागीय या प्रशासी प्राधिकारियों के समक्ष हुई कार्यवाहियाँ भी न्यायिक प्रकृति की नहीं होती हैं और उनके विरुद्ध दोहरे खतरे के नियम की सुरक्षा का दावा करना (furnish evidence) वर्जित नहीं है। आत्म-अभिशंसन का अर्थ केवल ऐसी सूचनाएँ देना है जो साक्षी के वैयक्तिक ज्ञान पर आधारित हैं, न कि ऐसे साक्ष्य पर जो यांत्रिक प्रक्रिया पर आधारित हैं।
आत्म-अभिशंसन (Self-Incrimination) : [ अनुच्छेद 20 ( 3 ) ]
अनुच्छेद 20 का खण्ड (3) यह उपबन्धित करता है कि किसी भी व्यक्ति को, जिस पर कोई अपराध लगाया गया है, स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।
प्रत्येक व्यक्ति तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसे अपराधी न सिद्ध कर दिया जाय। अपराधी के अपराध को सिद्ध करने का भार अभियोजक(Prosecutor) पर होता है।
अपराधी को अपनी इच्छा के विरुद्ध कोई स्वीकृति या बयान देने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार यह अनुच्छेद 20 (3) दण्ड विधि के मूल नियम को एक संवैधानिक स्तर प्रदान करता है।
अनुच्छेद 20( 3 ) का संरक्षण तभी मिलेगा जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों
- व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप लगाया गया हो।
- उसे अपने विरुद्ध साक्ष्य देना हो।
- उसे अपने ही विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य किया जाए।
1. व्यक्ति को अपराध में आरोपी होना चाहिये
अनुच्छेद 20 (3) का संरक्षण केवल अपराध के अभियुक्त (accused of an offence) को ही प्राप्त है। यह सिविल – कार्यवाही में नहीं लागू होता है, भले ही आपराधिक दायित्व ऐसी कार्यवाही के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले हों।
2. अपने विरुद्ध साक्ष्य देना (To Be A Witness Against Himself)
अनुच्छेद 20 (3) का संरक्षण अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य किये जाने के विरुद्ध प्राप्त है।
बाम्बे राज्य बनाम काथूकालू के केस में उच्चतम न्यायालय ने ‘गवाह बनने के लिए’ वाक्य का अर्थ दिया।
न्यायालय ने कहा कि गवाह बनने का अर्थ साक्ष्य प्रस्तुत करना या न्यायालय में किसी विलेख को प्रस्तुत करना जो विवादास्पद विषय पर कुछ प्रकाश डालता हो। इसमें आरोपी के ऐसे बयान शामिल नहीं हैं जो उसके व्यक्तिगत ज्ञान पर आधारित हैं।
सरल शब्द में कहे तो व्यक्ति द्वारा दिए हुए अपने अँगूठे का निशान(Thumb Impression) या हस्ताक्षर का प्रयोग गुनाह की जगह से मिले साक्ष्य से तुलना(Match) करने के लिए किया जाता है, नहीं की उसके विरुद्ध गवाही देनें में
आपने कई फिल्म और टीवी सीरियल में पुलिस को यह बयान देते सुना होगा की “गुनाह की जगह से मिले फिंगरप्रिंट इस आरोपी की फिंगरप्रिंट से मिलते है”,
पुलिसवाले कभी ऐसा नही बोलेंगे की ‘यह फिंगरप्रिंट इस आरोपी के ही है’, क्योकि ऐसा बोलने से व्यक्ति के खिलाफ साक्ष्य(fingerprint) का सीधा उपयोग हो जाएगा जो अनुच्छेद 20(2) के खिलाफ है, फिंगरप्रिंट और हस्ताक्षर का उपयोग होगा लेकिन परोक्ष तरीके से
क्या आरोपी फिंगरप्रिंट और हस्ताक्षर देनें से मना कर सकता है?
नहीं कर सकता, फिंगरप्रिंट और हस्ताक्षर अनुच्छेद 20(2) अंतर्गत खुद के विरुद्ध साक्ष्य नही है इसीलिए आरोपी देना पड़ेगा
अगर व्यक्ति खुद अपना गुनाह स्वीकार कर ले तो?
अगर आरोपी पुलिस के सामने गुनाह स्वीकार करता है तो वह कोर्ट में मान्य नही होगा
आरोपी को गुनाह स्वीकार करके गुनाह करने के साक्ष्य को दर्शाना होगा
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Thanky you so much sir
Very good explanation sir..keep it up!!
बहुत सुंदर
Bhaut achcha samj aaya sab kuch thank you
आपका धन्यवाद आपने काफी अच्छे विस्तार से लिखा हमें पढ़ कर बहुत अच्छा लगा और समझ में भी आया ।
ji sukriya
Sir thank you so much.It really helped to understand the actual meaning.
Keep up your good work.