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अनुच्छेद 16 लोक नियोजन में अवसर की समता । Article 16 In Hindi

भाग 3 के अनुच्छेद 15 मे सार्वजनिक स्थलो पर समता प्रदान करने के बाद अनुच्छेद 16 मे लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता

16(1): राज्य के अधीन किसी पद नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

16(2): राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा ।

16(3): इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नही करेगी जो किसी राज्य या संध राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के सबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है। [7वां संविधान संशोधन, 01-11-1956 से प्रतिस्थापित]

16(4): इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिको के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदो के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

16(4)(क): इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओ में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओ में किसी वर्ग या वर्गों के पदो पर, पारिणामिक ज्येष्ठता सहित, प्रोन्नति के मामलो में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।[77वां संविधान संशोधन, और 85वां संविधान संशोधन (2001) , 17-06-1995 से प्रतिस्थापित, भूतलक्षी प्रभाव]

16(4)(ख): इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक् वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के संबंध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा ।[81वां संविधान संशोधन 09-06-2000 से अन्तःस्थापित]

16(5): इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से संबंधित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का मानने वाला या विशिष्ट संप्रदाय का ही हो।

16(6): इस अनुच्छेद की कोई बात, राज्य को विद्यमान आरक्षण के अतिरिक्त तथा प्रत्येक प्रवर्ग में पदों के अधिकतम दस प्रतिशत के अध्यधीन, खंड (4) में उल्लिखित वर्गों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं वर्गों के पक्ष में नियुक्तियों और पदों के आरक्षण के लिए कोई भी उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। [103वां संविधान संशोधन, 14-01-2019 से अन्तःस्थापित]

-संविधान के शब्द

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अनुच्छेद 16 का स्पष्टीकरण(Explanation)

अनुच्छेद 15 मे सार्वजनिक स्थलो पर समता प्रदान करने के बाद अनुच्छेद 16 मे सरकारी लोक सेवा की नौकरी मे सभी को समता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद 16(1):

यह सिर्फ राज्य के अधीन आने वाली सरकारी नौकरी पर समता की गेरेंटी देता है जैसे की UPSC,SSC,Bank की भरती, राज्यो की PCS आदि …….

राज्य के अधीन कोन आता है यह अनुच्छेद 12 मे बताया हुआ है। नागरिक किसी ख़ानगी(Private) संस्था से समता की आशा नही रख सकता ।

हा, यदि ख़ानगी कंपनी अपनी नैतिक फर्ज के चलते अगर समता का पालन करती है तो यह देश के लिए बहुत अच्छी बात है , लेकिन पालन नही करती है कोर्ट मे उसके विरुद्ध अपने मूलभूत अधिकार की मांग नही की जा सकती है।

नियुक्ति और नियोजन मे सिर्फ नागरिक को समता मिलेगी, कोई विदेशी या शरणार्थी को नही मिलेगी। इसीलिए तो शरणार्थी के लिए रोजगार कम उपलब्ध होता है।

अनुच्छेद 16(2):

विभेद नही करने के लिए अनुच्छेद 15 की तुलना मे अनुच्छेद 16 मे उद्भव और निवास दो ज्यादा आधार का समावेश किया गया है। फिर भी भाषा, शारीरिक और बौद्धिक क्षमता जैसे आधारो को समावेश नही किया गया है जिससे इन आधारो पर विभेद हो सकता है।

उदाहरण: गुजरात या तमिलनाडू लोक सेवा की परीक्षा के लिए पेपर सिर्फ गुजराती या तमिल भाषा मे निकाले जाते है तो जिसको इस भाषा का ज्ञान नही है वह परीक्षा नही दे पाएगा। यानि की भाषा की जानकारी न होने पर नियोजन मे अवसर नही।

उदाहरण: पुलिस या आर्मी की भरती मे शारीरिक क्षमता के आधार पर भेद होता है । अपाहिज लोगों को एसे मामलो में समता का अवसर नही मिलता।

नोंध: HIV एड्स के रोगी को सरकारी नौकरी मे मना नही किया जा सकता लेकिन कोई चेपी रोग(जैसे कोरोना) है तो स्वस्थ होने तक उसको नियोजन से दूर रखा जा सकता है। (एसी कई भिन्न परिस्थितिया हो सकती है)

अनुच्छेद 16(3):

जेसा की हमने 16(2) मे देखा निवास के आधार पर राज्य कोई भेद नही कर सकता। लेकिन उसमे एक छुट(अपवाद) के रूप मे अनुच्छेद 16(3) को स्थापित किया गया।

अपवाद के रूप मे लिखा गया यह अनुच्छेद संसद को शक्ति देता है की – अगर संसद, राज्य या संध राज्य मे लोक नियोजन के लिए उस क्षेत्र का निवासी आवश्यक बनाता है तो वह मान्य होगा।

मतलब की अगर आपको पंजाब के लोक नियुक्ति मे भाग लेना है तो आपके पास पंजाब का अधिवास(Domicile) सर्टिफिकेट होना जरूरी है।

इसका मतलब यह नही है की आपको पंजाब मे जन्म लेना पड़ेगा, आप कुछ साल वहा रहकर भी domicile सर्टिफिकेट ले सकते हो।

संसद ने इस शक्ति का इस्तिमाल करके लोक नियोजन (निवास विषयक अपेक्षा) अधिनियम, 1957 बनाया।

जिसमे आंध्रप्रदेश,मणिपुर,त्रिपुरा,हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यो मे लोक नियोजन के लिए निवास आवश्यक बनाया गया। लेकिन बाद में नियोजन मे उमेदवार की कमी और राज्यो के पुनःगठन जैसे कारणो से 1974 मे इसको निरस्त कर दिया।(केवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए अनुच्छेद 371D मे विशेष प्रावधान से यह कानून लागू है)

अनुच्छेद 16(4):

यह अनुच्छेद सरकारी नौकरी की नियुक्ति तथा बढ़ती में आरक्षण की बात करता है। जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है उनको समानता प्रदान करता है।

शब्द “पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग” का मतलब है अनुसूचित जातियों(SC), अनुसूचित जन जातियों(ST) और अन्य पिछड़े समुदाय(OBC)।

सरकार आरक्षण किसको देगी यह एक प्रश्न है?

जिसमे संविधान बताता है की सरकार को एसी जातियाँ ढूंढनी होगी जिसका सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व कम है मतलब की उस जाति की जनसंख्या के अनुरूप कम लोग सरकारी नौकरी में है।

एसी जातियो को ढूंढने के लिए सरकार ने काका कालेलकर(पिछड़ा वर्ग आयोग) , मंडल कमीशन आदि का गठन किया था।

16(4)(क) ने नौकरी में आरक्षण दे दिया लेकिन उन पिछड़े हुए समुदाय मे इतनी जागृति तो होनी चाहिए की वह आकर फॉर्म भरे और परीक्षा पास करे, लेकिन देखा गया की हर साल आरक्षित की हुए कुछ सीटे खाली रहती है।

इसी खाली सीटो को भरने के लिए 81वां संविधान सुधारा करके अनुच्छेद 16(4)(ख) को जोड़ा गया। जिसमे प्रावधान किया गया की खाली रहती आरक्षित सीटे अलगे साल जोड़कर भरी जाएगी।

ऐसे तीन सालो तक सीटे अग्रनीत(Carry Forward) की जा सकती है। उसके बाद वह समाप्त(Lapse) हो जाएगी।

आपको प्रश्न होगा की एसे अग्रनीत करने से अगले साल आरक्षण 50% से ज्यादा नही हो जाएगा?

जी हा, बिलकुल हो जाएगा, लेकिन एसे मामलो मे छूट दी हुई है । 50% से ज्यादा हो जाने पर भी जोड़कर सीटे देनी होगी। इसको अंग्रेजी मे बॅक लोक(Back Lock) बोलते है।

उदाहरण: 2020 मे UPSC में 1000 सीट है जिसमे से 75 सीट ST समुदाय को देनी है, लेकिन उमेदवार ही 50 चुने गए है, बाकी बची 25 सीटे अलगे साल 2021 मे जोड़ दी जाएगी।

मानले की 2021 मे कुल सीटे 900 आई है जिसमे 70 ST को देनी है तब वर्ष 2021 मे ST के लिए 70+25=95 सीट होगी।

यधपि सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4) मे कुछ सीमाएं निर्धारित की है इनमें-

  1. आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% होगी (मात्रात्मक सीमा)
  2. क्रीमीलेयर का सिद्धान्त (गुणात्मक बहिष्कार)
  3. पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता, निहित शक्तियों के का स्थान, उपयोग हेतु अनिवार्यता(पिछड़ापन और नौकरी मे कम प्रतिनिधित्व होना चाहिए)
  4. समग्र प्रशासनिक दक्षता की आवश्यकता जो अनुच्छेद 335 के अनुपालन में हो।(सिर्फ आरक्षण नही उमेदवार लायक भी होना चाहिए)

अनुच्छेद 16(5):

इसमे धार्मिक या सांप्रदायिक संस्था को अपने धर्म या संप्रदाय मे किसी पद पर नियुक्ति करने की छूट दी गई है।

सीधे शब्दो में कहे तो मंदिर मे पुजारी सिर्फ हिन्दू और मज्जीद मे मौलाना सिर्फ इस्लाम धर्म से ही हो सकते है एसा नियम या आरक्षण करने की उस धर्म के लोगो को छुट दी गई है।

राज्य एसे धार्मिक पदो को पिछड़े समुदाय के लिए आरक्षित करे एसा दबाव नही डाल सकता है। लेकिन आपको कुछ एसे उदाहरण मिल जाएंगे जहा मंदिर मे मुस्लिम और मज्जीद मे हिन्दू उचे स्थानो पर नियुक्त है, यही तो हमारे भारत की विशेषता।

अनुच्छेद 16(5) अपवाद के रूप में है जो अनुच्छेद 16 की ‘लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता’ के सामने अनुच्छेद 26 की ‘धार्मिक कार्यो के प्रबंध की स्वतंत्रता’ को ऊपर रखता है। (अनुच्छेद 26 > अनुच्छेद 16)

अनुच्छेद 16(6):

इतिहास में जिस समुदाय के ऊपर अत्याचार, शोषण, भेदभाव हुआ जिससे वह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े रह गए उनको तो आरक्षण दिया गया था।

लेकिन इन सब से नही गुजरे एसी उच्च माने जाने वाली जातियों मे कुछ परिवार एसे है जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, जिनको सरकार की सहायता की आवश्यकता है। एसे आर्थिक रूप से पिछड़े उच्च जातियों के लोगों के लिए अनुच्छेद 16(6) मे 10% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

इस आरक्षण में संसद मे नमूना अधिनियम बनाया है और राज्यो को अपने तरीके से बदलाव करने की छूट दी हुई है। जिसमे आर्थिक पछात किसको माना जाएगा इसके मापदंड है।

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