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अनुच्छेद 15 भेदभाव का निषेध | Article 15 of Indian Constitution in Hindi

भारतीय संविधान भाग 3 के अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 को समता के अधिकार(Right To Equality) में वर्गित किया है। जिसमे अनुच्छेद 15 कुछ आधारो पर नागरिकों से भेद करने से राज्य को रोकता है।

अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध

15(1): राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

15(2): कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर (क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
15(2)(ख): पूर्णत: या अंशत: राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग, के संबंध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।

15(3): इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।


15(4): इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

15(6): इस अनुच्छेद के अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात, राज्य को

15(6)(क): खंड (4) और खंड (5) में उल्लिखित वर्गों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए कोई भी विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ; और

15(6)(ख): खंड (4) और खंड (5) में उल्लिखित रोगों से भिन्न नागरिकों के आर्थिक रूप से दुर्बल किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए कोई भी विशेष उपबंध करने से वहां निवारित नहीं करेगी, जहां तक ऐसे उपबंध, ऐसी शैक्षणिक संस्थाओं में, जिनके अंतर्गत अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं से भिन्न प्राइवेट शैक्षणिक संस्थाएं भी हैं, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाने वाली हैं या सहायता न पाने वाली हैं, प्रवेश से संबंधित हैं, जो आरक्षण की दशा में विद्यमान आरक्षणों के अतिरिक्त तथा प्रत्येक प्रवर्ग में कुल स्थानों के अधिकतम दस प्रतिशत के अध्यधीन होंगे ।

स्पष्टीकरण: इस अनुच्छेद और अनुच्छेद 16 के प्रयोजनों के लिए “आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग” वे होंगे, जो राज्य द्वारा कुटुंब की आय और आर्थिक अलाभ के अन्य सूचकों के आधार पर समय-समय पर अधिसूचित किए जाएं ।

– संविधान के शब्द

अनुच्छेद 15 का स्पष्टीकरण(Explanation)

इसको पढने से लगता है की बहुत विस्तृत विषय वस्तु है। 

अनुच्छेद 15(1): 

यह खंड राज्य की कार्यवाही के विरुद्ध रक्षा देता है। अनुच्छेद कहता है की राज्य द्वारा किये हुए कोई भी राजनैतिक, आर्थिक, सिविल या अन्य कार्यो में किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म,मूलवंश,जाति,लिंग या जन्मस्थान या इनमे से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। 


इसका सीधा अर्थ है की राज्य एक धर्म ज्यादा और दूसरे धर्म के लोगों को कम महत्व नहीं दे सकता दोनों को एक समान रखना होगा। यह लघुमति समुदाय को अन्य समुदाय की तरह समान अधिकार देता है। 


यहाँ ध्यान दे तो ‘केवल‘ शब्द लिखा है मतलब की इसके अलावा किसी विषय पर राज्य भेदभाव कर सकता। ऐसी घटना में हम कोर्ट में जाकर अपना अधिकार नहीं मांग सकते। जैसे भाषा,निवास, शारीरिक या बौद्धिक क्षमता के आधार पर भेदभाव हो सकता है।

उदाहरण: (1) गुजरात में जन्मे हुए को राशनकार्ड मिलेगा जबकि बिहार से यहा काम करने आये मजदुर, जो पिछले कई सालो से गुजरात के निवासी है फिर भी राशनकार्ड नहीं मिलेगा। (इसके उपाय के लिए अब सरकार One Nation One Ration card ला रही है)

(2) जैसे महिलाओं को नर्स के लिए ज्यादा उपयुक्त समजना और भारी उद्योगों में काम करने के लिए कम उपयुक्त समझना असंवैधानिक नहीं माना जायेगा। 


और पढ़े:-

अनुच्छेद 15(2): 

धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर किसी भी सार्वजानिक स्थान पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। लेकिन इस खंड में यह शर्त है की यह स्थल पूर्णतः या आंशिक सरकारी फंड से चलते होने चाहिए , मतलब की यह अधिकार खानगी(Private) संस्था ऊपर लागु नहीं होते।  

किन विषयो पर भेदभाव हो सकता है ?

किसी स्थल के निति-नियम के उलंधन, कोरोना जैसी चेप ग्रसित बीमारी से पडित है, शारीरिक(बच्चे को तालाब के पास न जाने देना) या बौद्धिक क्षमता आदि सकारात्मक विषयो पर भेदभाव किया जा सकता है। 

अनुच्छेद 15(3): 

स्त्री या बच्चो के लिए आरक्षण प्रदान करना असमता नहीं माना जायेगा। जैसे सरकारी बस या रेल में महिला के लिए आरक्षित सीट। 

अनुच्छेद 15(4):

राज्य केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदाय को आरक्षण देती है तो यह अन्य समुदाय के समता के अधिकार की हानि नहीं होगी। मतलब की जनरल कैटेगोरी के व्यक्ति इस बात पर कोर्ट में जाकर समता का अधिकार नहीं मांग सकते।


भूतकाल में हुए कुछ समुदाय के साथ हुए भेदभाव की भरपाई करने के लिए यह सकारात्मक भेदभाव(Positive & Protective Descrimination) का प्रावधान किया है। प्रथम संविधान संशोधन से इसको जोड़ने के बाद OBC, ST ,SC समुदाय को आरक्षण दिया गया। 

अनुच्छेद 15(5): 

यह 93वें संविधान संशोधन से 2005 में जोड़ा गया। अनुच्छेद 15 सिर्फ सरकारी या सरकार फंडित संस्था पर भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता था, इस कमी को दूर करने के लिए प्राइवेट शैक्षिक संस्था में भी SC,ST आरक्षणित सीट का प्रावधान किया। 

आरक्षण का सिद्धांत इसी अनुच्छेद 15 से निकला है और इसी पर से क्रीमी लेयर(Creamy Layer) का सिद्धांत भी आया है।

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14 Comments

  1. लोग जातिसूचक टाइटल ही बंद कर दें ताकि किसी भी सरकारी संस्थान में प्रवेश के लिए कोई भेदभाव ना हो सके

  2. एक बडा बदलाव हमारी शिक्षा नीति में होना जरूरी है

  3. Respect sir
    At.17 me bhedbhaw ke bare me likha gaya hai lekin. Ab v kahi jagho par bhedbhaw hota hai mai Gn category se aati hu , lekin mai abhi v apne aas pass logo ko jati ke adhar par bhedbhaw karte dekhti hu .
    Iske liye to sirf yahi ho sakta hai ki pura (cast system)hi hata Diya Jaye , documents par category ka option hi nahi hona chahiye , jisse kisi ko kuch pata hi na chale .

  4. I think sirf sochke ya likhke kuch nahi hone wala ye sab baate school, college me aake batani chaiye ,
    Kyonki kayi baar hum jaise students to samjhte hai lekin parents’ nahi samjhte .
    So parents ko samjhana v ek bahut bada kaam hai .

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