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अनुच्छेद 14 समता का अधिकार: विधि के समक्ष समता एवं संरक्षण | Article 14 In Hindi

पथ प्रदर्शन: भारतीय संविधान > भाग 3 : मूल अधिकार > समता का अधिकार > अनुच्छेद 14

भारतीय संविधान भाग 3 के अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 को समता के अधिकार में वर्गित किया है। मतलब की यही अनुच्छेद जनता को समता प्रदान करेंगे। 

अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता

राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरक्षण से वंचित  नहीं करेगा। 

– संविधान के शब्द

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अनुच्छेद 14 का स्पष्टीकरण

यह नकारात्मक विधान है और यह अधिकार सभी लोगों के लिए है | (नागरिक + रहेवासी)

नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) और कानून का शासन(Rule Of Law) का सिद्धांत अनुच्छेद 14 से निकलकर आता है। और यह अनुच्छेद ‘आधारभूत ढांचे’ में आता है।

आपको प्रश्न होगा की अनुच्छेद 14 क्या कहता है ?…..

प्रथम द्रष्टि में “विधि के समक्ष समता” और “विधियों का समान संरक्षण”धारणा समरूप लगती है लेकिन वास्तव में इनका अर्थ भिन्न है। 

(1) विधि के समक्ष समता (Equality Before Law)

विधि के समक्ष समता संकल्पना ब्रिटिश संविधान से उत्पन्न हुई है। जो एक नकारात्मक धारणा है। 

इसमें बताया गया है की

  1. किसी भी व्यक्ति को जन्म या मत के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं होंगे और
  2. सभी वर्ग समानरूप से सामान्य विधि के अधीन और सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता के अंतर्गत होंगे।  
  3. कोई भी व्यक्ति (चाहे अमीर या गरीब, उच्च-नीच, अधिकारी या गैर अधिकारी) कानून से ऊपर नहीं होगा। 

उदाहरण: कोई सामान्य व्यक्ति खून करे और सरकारी अधिकारी खून करे दोने के ऊपर समान तरिके से मुकदमा चलेगा और सजा का प्रावधान भी समान होगा मतलब की एक ही कानून दोनों पर समान तरिके से लागू होगा। 

(2) विधि का समान संरक्षण (Equal Protection Of Law)

विधि का समान संरक्षण संकल्पना अमेरिकी संविधान से उत्पन्न हुई है। जो एक सकारात्मक धारणा है। 

विधि के समान संरक्षण से तात्पर्य है

(1) समान लोगों में विधि समान होगी और समानरूप से प्रशासित की जाएगी अर्थात समान लोगों के साथ समान व्यवहार होगा

(2) समान परिस्थिति में रहते लोगों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार किया जायेगा। 

उदाहरण: पैसेदार व्यक्ति कोर्ट में अच्छा वकील रखेगा तो समता के लिए गरीब व्यक्ति को कोर्ट सरकारी वकील की मुफ्त में सुविधा उपलब्ध करवाएगी। अमीर या गरीब दोनों कोर्ट में या सरकारी दफ्तर में समान तरिके से अपना काम करवा सकते है। 

उदाहरण: पुलिस और सेना के जवान ने गलत एन्काउंटर किया है तो दोनों की कार्यवाही अलग कोर्ट में चलेगी इसको समता के अधिकार से बहार किया हुआ है।   

समता के अधिकार के अधिकार का यह मतलब नहीं है की सब परिस्थिति में समान व्यवहार होगा , यह अनुच्छेद समान परिथिति में समता की गेरेंटी देता इसका अर्थ है परिथिति बदलने से व्यवहार भी बदल जाता है। 

जैसे खून और चोरी के गुने में दोनों के साथ एक जैसी कार्यवाही नहीं हो सकती। 

समता की यह दोनों संकल्पना अंत में जनता को कानून,अवसर और न्याय की समानता प्रदान करती है। 

अनुच्छेद 14 में अपवाद (Exception In Right To Equality) 

भारत के संविधान में ‘विधि के समक्ष समता’ के निम्नलिखित अपवाद है –

(1) राष्ट्रपति या राज्य का राज्यपाल अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों के पालन के लिए किसी भी न्यायालय में उत्तरदायी नहीं होगा।

(2) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उसके कार्यकाल के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दाण्डिक कार्यवाही(Criminal Processor) नहीं की जाएगी। 

(3) राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के रूप में अपना पद ग्रहण करने से पहले या उसके पश्चात्, उस सिविल कार्यवाहियां हो सकती है लेकिन दो मास पहले विरोधी पक्ष को नाम, पता, विवाद का मुद्दे का वर्णन करके लिखित में नोटिस देनी पड़ेगी|(अनुच्छेद 361)

(4) संसद या राज्य विधानमंडल का कोई भी सदस्य सत्र शरू होने के समय फौजदारी या दीवानी किसी भी केस में न्यायलय के सामने उपस्थित रहने के लिए बाध्य नहीं है। (अनुच्छेद 361-A) 

(5) संसद या राज्य विधानमंडल का कोई भी सदस्य सदन में बोले गए शब्द, भाषण या दिए गए मत के लिए किसी भी न्यायलय के प्रति जवाबदेह नहीं है। (अनुच्छेद 105 और 194)

(6) अनुच्छेद 31(C) अपवाद है इस के अनुसार राज्य नीति निर्देश सिद्धांतो का पालन करके अनुच्छेद 39 के अंतर्गत कोई कानून बनता है जो अनुच्छेद 14 का उलंघन करता है तो वह मान्य होगा।   

(7) विदेशी संप्रभु (शासक), राजदूत और राजनायक(Diplomats)  द्वारा किये हुए फौजदारी या दीवानी गुनाओ के लिए अलग से वैश्विक निति नियमो होंगे। यानि की समता के आधार पर राज्य उनपर कार्यवाही नही करेगा। 

 (8) सयुंक्त राज्य संस्थाओ (UNO) और उसकी एजेंसियोके अधिकारी भी गुनाओ में सुरक्षित है। (इन सब पर UN के कानून से कार्यवाही होती है)

अनुच्छेद 14 के कुछ तथ्य

अनुच्छेद 14 में निहित विधि शासन संविधान के “आधारभूत ढाँचा” में समाहित होता है; इसीलिए इस अनुच्छेद को अनुच्छेद 368 के अधीन संशोधन करके नष्ट नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद 14 का संरक्षण ‘नागरिक’ और ‘अनागरिक’ दोनों को प्राप्त है

अनुच्छेद 14 में ‘नागरिक’ शब्द के स्थान पर ‘व्यक्ति’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि यह अनुच्छेद भारत के भू क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों को, चाहे वह भारत का नागरिक हो या विदेशी हो, विधि के समक्ष समता का अधिकार प्रदान करता है।

भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति, चाहे भारतीय नागरिक हो अथवा नहीं, समान विधि के अधीन होगा और उसे विधि का समान संरक्षण प्रदान किया जायेगा।

इसके विपरीत अनुच्छेद 15,16, 17, 18 आदि के उपबन्धों का लाभ केवल ‘नागरिकों’ को ही प्राप्त है। अनुच्छेद 14 में उल्लिखित मूल अधिकार सभी व्यक्तियों को ही प्राप्त हैं।

अनुच्छेद 14 नागरिक और अनागरिक में कोई भेद नहीं करता है। विधि के समक्ष समता का अधिकार सभी व्यक्तियों को बिना किसी मूलवंश, रंगभेद और राष्ट्रीयता के भेदभाव के प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 14 में ‘विधिक व्यक्ति’ भी शामिल हैं

क्या ‘व्यक्ति’ शब्द के अर्थान्तर्गत विधिक व्यक्ति भी आते हैं?

यह प्रश्न चिरंजीत लाल बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय के विचारार्थ आया था।

उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अनुच्छेद 14 में प्रयुक्त “व्यक्ति” शब्द के अन्तर्गत ‘विधिक व्यक्ति’ भी सम्मिलित हैं।

विधिक व्यक्ति क्या होता है?

मतलब की कोई संस्था, निगम, कंपनी जो सरकार के कानून के अंतर्गत गठन हुआ हो उसको ‘विधिक व्यक्ति’ कहते है, और इन सभी भी को विधि के समक्ष समता का अधिकार उपलब्ध है।

यानि अगर दो कंपनी के उपर केस चल रहा है तो सरकार या न्यायलय उन दोनों में कोई भेदभाव नही करेंगे

अनुच्छेद 14 ने किसको समता प्रदान की है?

1. भारत के नागरिक
2. अनागरिक व्यक्ति
3. हिजड़ा समुदाय या तीसरे लिंग के लोग
4. विधि द्वारा बनाई गई सही संस्था

Article 14 In Hindi, Samta Ka Adhikar

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5 Comments

  1. सर मेरा प्रश्न है कि दहेज लेना या देना कहा तक सही है और यदि शादी-ब्याह के बाद कोई अनहोनी की दस मे दोनो मे कौन दोषी होगा?
    याद रहे संविधान कहता है कि दहेज लेना या देना दोनों ही अपराध है।

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